पद राग मारवाडी न॰ १७
सहेल्या सूती जागो ये भयो प्रभात।
उदय भाण प्रकाश्या ये गई सब रात॥टेर॥
म्हारे पारब्रह्म प्रकाशा सब भरम करम भये नाशा।
मैं जनम मरण नहीं आत॥१॥
म्हारे अखण्ड जोत उजियाला सखी खुल गया घट का ताला ।
नहीं मावे मन मे बात॥२॥
म्हारे अनंत कला प्रकाशी में भेट लिया अविनाशी।
सखी महिमा वर्णिन जात॥३॥
श्री पूज्य देवपुरी भगवाना श्री दीप कहे मन माना।
गह्योरी मेरो हाथ॥४॥