पद राग मारु नं॰ ३३
सोदा वो सतगुरु नाम का।
ज्या सू सर्व दरिद्र जाय॥टेर॥
नाम बिणज सतगुरु किया जी दीना रतन अमोल।
भरिया खजाना ज्ञान का जी कोई परखे खोल॥१॥
सत गुरु शब्द सुणा श्रवण में आय गयो आपान।
एक रतन की कौन चलाई खुल गई रतनों की खान॥२॥
गुरु गम हाट लगी हृदय, ग्राहक स्वजन पाय।
मिले मुनाफा नाम का जी, अजर अमर हो जाय॥३॥
धन्य शाह जन सोदा किया जी, भरिया माल अपार।
तीन लोक तुलना करे तो नहीं पावेला पार॥४॥
श्री देवपुरी परब्रह्म गोस्वामी निज केवल निरधार।
श्री स्वामी दीप कहे यह सोदा सत गुरु से व्यवहार॥५॥