पद राग पारवी नं॰ ३५
मोय सत गुरु दियो इशारो।
मम सत्य स्वरुप विचारो॥टेर॥
तिल में तेल दारु में अग्नी पुष्प गन्ध सम सारो।
नभ नीला पण एक कर मानो ज्यों लोह में हथियारो॥१॥
मैं ही देवल मैं ही देव देवरा मैं ही पाठ पुजारो।
मैं ही काशी मैं ही मथुरा मैं ही गंग केदारो॥२॥
मैं ही माला तिलक स्मरणा मैं नवधा भक्ति वारो।
मेरी महिमा मैं ही गाऊँ मैं ही सुणने हारो॥३॥
मैं सेवक मैं ही स्वामी मैं ही भानु उजारो।
मैं ही सूर सितारा बिजली सब मैं रोशन म्हारो॥४॥
तू सो मैं ही मैं ही सो तू है, तू मुझ से नहीं न्यारो।
श्री स्वामी दीप कहे स्व महिमा गीता ग्रंथ पुकारो॥५॥