पद राग तिलग नं॰ ३८
कीना कोटि भानु प्रकाश, सतगुरु साहेब तुररे वाला ये।
महिमा वर्णिन जावे आज सखी मम भाग विशाला ये॥टेर॥
अनंत कला सू भल हल भल के नूर निराला ये।
निरालेप निर्विकार चेतन लागे वाला ये॥१॥
नित्य मुक्त निष्काम निरामय रहने वाला ये।
हद बेहद परे मुकाम चन्द्र बिन सूर उजाला ये॥२॥
हरष हरष कर मंगल गाऊँ पाया प्याला ये।
निर्गुण निर्मल निराधार गुरुदेव दयाला ये॥३॥
श्री तुरिया अतीत गुरु देवपुरीजी कर दिये निहाला ये।
श्री स्वामी दीप कहे दिव्य दर्शन लागे वाला ये॥४॥