पद राग भैरवी को ठेको नं॰ ४०
गुरु सा बिना कारज नाय सरे।
कोटिक उपाय करे कोई चाहो, ना भव सिन्धु तरे॥टेर॥
गंगा जावो काशी जावो चारो धाम फिरे।
बन वैरागी उदासी अज्ञानी दारा धन बिसरे॥१॥
भूतां ने तो शीश निवावे भाटा भेट धरे।
पापी निवे नहीं सत गुरु आगे कष्ट अनेक भरे॥२॥
व्रत उपवास करे बहुतेरा भोंदू भूख मरे।
बिना ज्ञान आतम नहीं मुक्ति कहत संत सगरे॥३॥
श्री स्वामी दीप कहे गुरु चरणां तन मन अर्पण रे।
शरण परायण हो जावे सो निर्बन्धन विचरे॥४॥