पद राग आसावरी नं॰ ४२
साधो भाई सच्चा संत गुरु प्यारा।
कृतार्थ परमार्थ करवा, मानुषरा विपु धारा॥टेर॥
राज हंस गति सत गुरु स्वामी, क्षीर नीर कर न्यारा।
स्वानुभव आत्मदर्शी, तत्वज्ञ ब्रह्म विचारा॥१॥
गंग प्रवाह चले सत गाथा, बरसे अमृत धारा।
अमर मंत्र गुरु देव उचारे, तुरंत करे भव पारा॥२॥
सच्चा सत गुरु सिंह ज्यू गरजे, ज्ञान गिरा फटकारा।
सतवादी बनचर ज्यू भागे, कंठी तिलक पुजारा॥३॥
सच्चा सतगुरु सो जन पावे ज्यां का भाग सितारा।
श्री स्वामी दीप सच्चे सतगुरु के चरण कमल बलिहारा॥४॥