पद राग आशा योग नं॰४३
परम गुरु परम स्नेही हमारा।
अक्षरातीत अपूर निर्बन्धन सब को जानन हारा॥टेर॥
बिंदु में सिन्धु सिन्धु में बिंदु भेदा रहित अपारा।
चैतन्य शांत शाश्वतम् निर्मल बिंदु नाद के पारा॥१॥
भावा परे व्योम से सूक्षम वेदानुभव के बारा।
श्री गुरुदेव सदा स्वआतम नित्य पूर्ण निराकारा॥२॥
ब्रह्मानन्दम् बिमल अचलम् केवलं निराधारा।
गुरु से आदि हुवा नहीं कोई निर्गुणपद निराकारा॥३॥
परम धाम पुरुषोत्तम प्रगट श्री गुरुदेव हमारा।
श्री स्वामी दीपभया नित्यानन्द जै हो जै जै कारा॥४॥