पद राग बडा आशा नं॰ ४८
मन रे मनुष्य तन क्यों खोवे।
लख चौरासी फिरे भटकतो, जन्म जन्म लग रोवे॥टेर॥
हरी भजन का हीरा बिणजों, पाप बीज मत बोवे।
सत सुमरण कर सुकृत सौदा, इधर उधर काई जावे॥१॥
यह संसार स्वपन की माया, देख भूल मन मोहे।
जाग जरा अब पलक उघारो, भोर भयो कांई सोवे॥२॥
विषय रस मृग तृष्णा पाणी, प्यास कबहु नही जावे।
सोच समझ मन मांही बावरा, सतगुरु शरण सिधावे॥३॥
इस जग में दुर्लभ है सतसंग वेद संत सब गावे।
सतसंग को सुख परम आनन्द है, अजर अमर हो जावे॥४॥
श्री सतगुरु साहब देवपुरी सा प्रभु सतसंग यों फरमावे।
श्री स्वामी दीप सदा सत गावो, सूता हंस जगावे॥५॥