पद राग पहाडी खमाच नं॰ ५३
जागरे मन, जाग प्यारे, संत खेले फाग रे॥टेर॥
सम दम श्रद्वा मोक्ष इच्छा, सम्पति षट लाग रे।
अनन्य गुरु भाव भक्ति ज्याने मिले सो भाग्य रे॥१॥
चरण में लिपटाय जावो, होय के अनुराग रे।
धुनी सोहं बाजे श्रवण, सुनत होय वेराग्य रे॥२॥
वेद श्रुति साख भारती ज्यांरा है बड भाग रे।
संत जन सत फाग मांडयो, गावे घूमर राग रे॥३॥
ज्ञान में संशय नहीं कछु, ग्रहण योग न त्याग रे।
श्री स्वामी दीप ब्रह्म ज्ञानी, महिमा अति अथाग रे॥४॥