पद राग गजल रेखता नं॰ ५५
रे नर यह तन मानुष का, फिरके नहीं आयेगा।
जैसे चूडी कांच की, पल में बिखर जायेगा॥टेर॥
डाली से उडा पक्षी, लोट के न आयेगा।
बालू का मन्दिर यह, पल में नाश थायगा॥१॥
यह श्वास अंजली नीर ज्यो, टप टप निकल जायेगा॥२॥
पता लगता है नहीं, कि प्राण कब तक रहायेगा।
माला है रत्नों की मगर कम नन हो जायेगा॥३॥
गलता है ओला नीर में, ज्यों पिघल जायेगा।
श्री स्वामी दीप बिन भजन के, यह तन काम न आयेगा॥४॥