पद राग गजल कवाली नं॰ ६१
हमारे पास खुदाई हो तो हम खुदा ही नहीं।
अगर तुम जुदा कहो तो, हम जुदा ही नहीं॥टेर॥
नहीं है रंग रुप उसके, एक जगह रहता ही नहीं।
नहीं है नून में नुखता, अकल की गम में आता ही नहीं॥१॥
नहीं बहिश्त में नजर आता, दोजख में बैठा ही नहीं।
नहीं किसी के सामील रहता, और किसी से छिपा नहीं॥२॥
नहीं किसी से गुप्तमु करता, और किसी से बकता ही नहीं।
नहीं किसी से कहता सुनता, और किसी से उल्फत ही नहीं॥३॥
उस मुरसद के सुकन समझ बिन, कोई सबर पाता ही नहीं।
स्वामी दीप कहे अन्दर के चश्मा बिना, दिखाई देता ही नहीं॥४॥