पद राग दीपचन्दी तर्ज खमाच नं॰ ६२
दिवाना सतगुरु नाम का मस्ताना हेली।
बे परवाह फकीर॥टेर॥
गगन ओपमा गहरा कहिये, ज्यों धरनी ज्यूँ धीर।
अमृत जैसा मीठा कहिये, सीतल सागर नीर॥१॥
जात पात की संक न माने, समान पत्थर हीर।
तीन लोक की इच्छा नाहीं, नाहीं सुख बिना शरीर॥२॥
नहीं किसी को शंका माने, क्या राजा रंक वजीर।
भूख प्यास परवाह नहीं, राखें परबत ज्यों गहर ग्म्भीर॥३॥
जीवत ही मुरदा सम रैवे, नहि सिद्व नहीं पीर।
स्वामी दीप अवधूत अवलिया महावीरन का वीर॥४॥