पद राग आसावरी जोगिया नं॰ ७०
साधो भाई मैं निरगुण निरबानी।
अलौकिक अविचल अविनाशी, निराकार थिरथानी॥टेर॥
मेरी महिमा कोई ना जाने, अदभुत रुप लखानी।
वहां नहीं धरण गगन असमाना, नहीं है पवना पानी॥१॥
सुर नर देव मुनी नहीं जाने, नहीं अवतार पिछानी।
पीर पैगम्बर और अवलिया, योगी यती नहीं जानी॥२॥
साध सती नहीं सेवक जाने, ज्ञान ध्यान सकुचानी।
वेद पुराण महरम नहीं जाने, महिमा अकथ कहानी॥३॥
श्री देवपुरी पर-ब्रह्म है पूर्ण, तुरिया अतीत अमानी।
स्वामी दीप कहे भाई संतों बेगम परे निशानी॥४॥