पद राग आशावरी जोगिया नं॰ ७१
साधो भाई मैं हूँ आप अजाया।
मैं हूँ आद ब्रह्म अविनाशी, मेरा पार कोई नहीं पाया॥टेर॥
कई ब्रह्मा मैं पैदा कीना, बहु प्रलय पधराया।
कई शम्भु में उत्पन्न कीना जनम अनेक लिराया॥१॥
कई विष्णु में प्रकट कीना, बहु विध भोग भुगाया।
कई बार मैं धरण रचाई, बहु चांद सूरज उपजाया॥२॥
कई ईन्द्र मैं आगे उपजाया, केई देवी देव बनाया।
कई बार मैं खलक बनाई, ऐसा हम खेल रचाया॥३॥
कई वेद पुराण बहु विधि गाया, मैं लिखनें में नहीं आया।
स्वामी दीप कहे सुणो भाई संतों, यह लेख अलेख सुनाया॥४॥