पद राग केदारा ताल दीपचन्द्र नं॰ ७४
हो गुरु देव सम उपकार, हमने देखियो न सुण्यो हेली।
कोई और न आये दाय रे, समझे सेन यह हेली॥टेर॥
मगर पकडता गज पुकारियो, अर्ध नाम स्वर बोलो।
गज को उबारलियो हरी हाथों, प्रीत बिचारी पेहली॥१॥
दुष्ट कष्ट दियो अति भारी, कपट बिचारयो होली।
अग्नि पुंज में लगी जलावन, दीनी जद हथेली॥२॥
द्रौपदी पत जावता जी, अब असुर चीर टंटोली।
पल भर में हरि करके प्रेरणा, चरण शरण में लेली॥३॥
अनंत कोटि अवतार जगत में, संत जन विपु धराली।
श्री दीप स्वामी करी हरी रक्षा, भक्त बिरद निभाली॥४॥