पद राग बधावा नं॰ ७५
हो आज सुख सागर नहावा ये।
पाप पूरबला उतरे, निर्मल हो जावा ये॥टेर॥
विमल सदा नित आनन्द सागर, अविचल हो जावा ये।
संत अनादि आद का, वारां दर्शन पावा ये॥१॥
होय लवलीन निमेष नहीं न्यारा परम पद ध्यावां ये।
कर्म कटे इण जीव का, हँस होय जावां ये॥२॥
निर्भय होय दरियाव समावा, फिर योनी नहीं आवांये।
परिपूर्ण है बाहर भीतर, थाह थीर लावां ये॥३॥
श्री स्वामी दीप शरण सतगुरु के बधावां बनावां ये॥४॥