पद राग पारवी नं॰ ७७
मन साँच बिना रे नहीं सुधरे।
चाहे जप तप करो हजार रे मन दूणों-दूणों बिगरे॥टेर॥
तीरथ व्रत करे चाहे कोई, इन बातो से भला न होई।
मूरख माल गमावे सिगरे॥१॥
चाहे योग समाधी साजे, पढ वेदांत ज्ञान में गाजे।
ये सब झूंठा जिकर रे॥२॥
साच राख सायब सिंवरे सत, गुरु वचन पलक नहीं बिसरे।
हमेशा करे चित को निगरे॥३॥
सतगुरु सायब देवपुरी सा निर्भय ध्यान धरे।
स्वामी दीप सत गुरु की कृपा भव सिन्धु सहज तिरे॥४॥