पद राग रसिया नं॰ ८४
सजन मन जागे ये, दोनों फरके नैन।
स्वप्न में निरख्या ये, मैं सत गुरु सायब सैन॥टेर॥
उनके बाद नींद नहीं आई, पलक न पाई चैन।
खडी खडी में पंथ निहारु, कोई आवे बधाई लैन॥१॥
एक सखी उम्हाई आई, बोली मधुरा बैन।
आज मने धन्यवाद दिरावो, मैं आई बधाई देन॥२॥
हिल मिल मंगल गावो सुन्दर, नास भई सब रैन।
मेरे मन्दिर मांहीं बिराजे, मैं फिदा हो रही बैन॥३॥
पूजन करुँ वारना आरती, हर्ष परकमा दैन।
श्री दीप कहे सतगुरु स्वामी को, निरख लिया भर नैन॥४॥