पद राग बारा हंस नं॰ ८९
थांरा देवरा में देव, बाहेर मत डोले।
बाहिर मत डोले, परबत राई ओले॥टेर॥
ऐसे व्यापक है गोंसाई, अग्नी दारु तेल तिल मांही।
सत गुरु चतुर सुजान, वांरों भेद खोले॥१॥
जैसे मृग बन खण्ड भटकन्दा, सूंघे घास ह्रदय का अंधा।
ऐसे जगत पडी सब फन्दा, भ्रम मिटे पल मांय।
सतगुरु शरणे होले॥२॥
सत संगत जग में सुख धारा, जो कोई जाय करे नित प्यारा।
कर्म कलेस मिटे सब वांरा, ज्ञान गंगा घट भीतर बेहवे न्हाय कर मेल धोले॥३॥
स्वामी दीप सत गुरु अविनाशी, वहां चरण शरण होले।
तारण तिरण संत अवतारा, भव सिन्धु से पार उतारे। अलक पलक खोले॥४॥