पद राग धनी श्री सारंग नं॰ ९०
गुरुवर मैं चालू सा, उण देश।
लोक लाज सब तज के कल्पना, धर के वैरागन वेश॥टेर॥
उणी वो देश में जन्म न मरणा, कर्म कलंक नहीं लेश।
जीवन मुक्त प्राप्त हमको, ब्रह्मानन्द हमेश॥१॥
उणी वो देश में अखण्ड उजाला, चन्द सूरज नहीं शेष।
रंग न रुप अनूप अनादि, नहीं पहोंचे रंक नरेश॥२॥
अगम देश में संत बिराजे, बारम्बार आदेश।
उणीवो देश में अमीया झरत है, सत गुरु इन्द्र सुरेश॥३॥
श्री दीप कहे पद ऐसा मन भावे, फिर नहीं जनम धरेश।
सदर सिंहासन आप बिराजे, ऐसा बो देगम देश॥४॥