पद राग रसिया नं॰ ९४
आज सखी में कहूँ किसको, मेरे पीव संबंधी बातडली।
सुख सेजां में आनन्द हो रया हाली, बीत गई सब रातडली॥टेर॥
सुख बोध स्वरुप अनूप भूप वहां से लग रही मेरी आखडली।
मन भरिया श्याम मिला मुझको, ज्यां से लग रही गाढी प्रीतडली॥१॥
पीव हमारा मैं पिव के संग खुलगई भरम की गांठडली।
आन पुरुष मेरे नजर न आवे, कौन जगत है बापडली॥२॥
उनमनी मौज कर मगन भई मिल रहा पिया भर बाथडली।
रंग सेज तणी हद मौज बणी, ठनी है पोव के सुख छातडली॥३॥
मिल गया नाथ भल किया साथ, है एक हमारी जातडली।
श्रीदीप कहे सत गुरुवार की सेवा, भाज गई सब भ्रांतडली॥४॥