पद राग बृज रसिया नं॰ १०३
आज सजन भाला भई पतिवरता।
सुन्दर श्याम मन भावत है ये॥टेर॥
धन्य अब तेरा पिव हुआ है प्रसन्न, भाग बडा सो ही पावत है ये।
पिव के बदन पर जाऊँ बलिहारी, नेणा से नेह मिलावत है ये॥१॥
हिल-मिल अंग रंग रली सहजां, तन-मन सुध विसरावत हैं ये।
आनन्द अपना आप ही जाने, कहन कथन नहीं आवत हैं ये॥२॥
अजर अमर है श्याम सदा ही, संत समागम पावत हैं ये।
मैं गुरुवर के चरणों की चेरी, स्वामी दीप गुण गावत हैं ये॥३॥