पद राग मारवाडी सैर नं॰ ११३
बिसरणी कोनी आवे सा, सतगुरु मुरशद को।
सतगुरु मुरशद को मेरा सायब यारब को॥टेर॥
कई कल्प का बिछडिया मिलिया, हिल मिल के मन भर के खिलिया।
मैं करु सलामी मालिक को॥१॥
फेर कबहूँ नहीं होवे बिछेवा, बारम्बार कदम की सेवा।
ये अरजी वो मेरी खुदा को॥२॥
अलख अल्ला सम और न कोई, ये हमने पलका में जोई।
मैं याद रखू वो महबूब को॥३॥
नमो नमो म्हादेव पुरी साहा, स्वामी दीप कदमों की साख साहा।
मैं नमन करुँ आदम को॥४॥