पद राग बारा हंस नम्बर ११८
ऐसा भोला शम्भु देख्या, साधो तप धारी।
तप धारी हो, लहरो धुन धारी॥टेर॥
जटा मुकट पे गंग बिराजे, हर हर शब्द उचारी।
तीन लोक का नाथ निरंजन, महिमा अगम अपारी॥१॥
ध्यान धरे कैलाश सिखर पर, कुदरत बांकी न्यारी।
अधर शून्य में आसन उनका, कहन कथन से पारी॥२॥
ज्ञान विज्ञान ध्यान मन धारी, सेज समाधी सारी।
हे कल्याण स्वरुप शिरोमणी, हर के कुबेर है भण्डारी॥३॥
महा देव श्री देवपुरी सा, निराकार अवतारी।
स्वामी दीप शरणागत सेवक, चरण कमल बलिहारी॥४॥