पद राग धनाश्री सारंग नम्बर १२२
पदमण पिव पिछाणो घर नार।
पिव बिना कछु शोभा न पावो बार-बार धिक्कार॥टेर॥
जावेलो मानुष तन वृथा सुन्दर,
हरदम करो विचार॥१॥
समझ बिना घणी दु:ख पावे,
नहीं सुन्दर घर बार॥२॥
सूती नीन्द में जाण सुहागण,
लगन लगावो तार॥३॥
अपना ही आप अलख पहिचानो,
ये ही अनुभव है सार॥४॥
सत गुरु सायब देवपुरी सा,
अजर अमर भरतार॥५॥
श्री दीप कहे शरणागत दासो, पूज्य प्राणनाथ आधार॥६॥