इस आश्रम में भगवान श्री दीप नारायण महाप्रभुजी ने बहुत वर्ष बिताये । यह आश्रम उनके जन्मस्थान हरिवसनि के निकट है।
नारंगी ध्वज
गाँव कचरास के पास तालाब से पूर्व की ओर एक पहाडी थी जो श्मशान डूंगरी (पहाड़ी) नाम से विख्यात थी। वह जगह अत्यन्त डरावनी एवं भयानक थी। वहाँ आसपास रहने वाले लोगों की यह मान्यता थी कि इस श्मशान डूंगरी पर जिन्न, भूत-प्रेत आदि रहते हैं। वहाँ पर दिन के समय भी मनुष्य नहीं जाते थे। वहीं पर जाकर सिद्ध योगीराज देवपुरी जी खड़े हुए और कहने लगे, ''दीप, यह जगह तुम्हारे लिए उपयुक्त है। तुम्हें इस स्थान को शाप मुक्त करना होगा। इस स्थान पर आने में लोगों को भय बना हुआ है। अत: तुम्हें उन सभी व्यक्तियों को अभयदान देना है।'' यह कहते हुए सिद्ध योगीराज श्री देवपुरीजी महाराज ने आश्रम के लिए भगवा झण्डा गाड़ दिया। उस समय श्री महाप्रभुजी ने आत्म अनुभव से यह भजन श्री गुरुदेव योगीराज श्री देवपुरीजी महाराज को सुनाया—
''भगवा ध्वज'' — एक भजन
है निशान भगवा हिन्द का, पूजनीय आदि अनादि।
पूजनीय आदि अनादि, सतगुरु शिव शंकर की गादी॥ टेर॥
सुरति और स्मृति गावें, कहते हैं ब्रह्मवादी।
प्रकट हैं प्रमाण वेद में, भिन्न-भिन्न कर समझादी॥ २॥
वन्दनीय विश्व का कहिये, त्याग प्रतीक हैं आदी।
साक्षीरूप सत्य सुख राशि, यह साँची बात बतादी॥ ३॥
भाग्यशाली भगवा की छाया, आवत हैं सत्यवादी।
अधम जीव नहीं जान सके हैं, भूल गया सत्यवादी॥४॥
श्री पूज्य भगवान देवपुरीजी, अनुभव अगम लगा दी।
श्री स्वामी दीप इष्ट हैं आदि, सतगुरु चरण शरण प्रसादी॥ ५॥
यह भजन सुनकर सिद्ध योगीराज श्री देवपुरीजी महाराज मंत्र मुग्ध हो गये। अति प्रसन्नतापूर्वक कहने लगे, ''दीप, यहीं पर तुम्हारा आश्रम बनना चाहिए।'' इतना कहकर श्री देवपुरीजी महाराज ने कैलाश की तरफ प्रस्थान कर दिया।
श्री देवडूँगरी संन्यास आश्रम की स्थापना
परम योगीराज श्री देवपुरीजी महाराज ने जिस स्थान पर भगवा ध्वज स्थापित किया था, उसी स्थान पर एक आश्रम बनाया गया था। यह स्थान ''देवडूंगरी संन्यास आश्रम'' के नाम से आज भी विख्यात है। अखण्ड बाल ब्रह्मचारी, अटल वैरागी भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभुजी का प्रभाव वहाँ के निवासियों को पहले से ही मालूम था, अत: ग्रामीण लोग प्रतिदिन हजारों की संख्या में आश्रम आते और दर्शन करके कभी-कभी वहाँ पर सत्संग का भी आयोजन करते। श्री महाप्रभुजी वीणा के तार पर अति मधुर भजन सुनाते। श्रोतागण भजन सुनते-सुनते मन्त्र मुग्ध हो जाते थे। आपकी सुमधुर वाणी में ऐसा आकर्षण था कि कठोर से कठोर हृदय भी खुशी से नाचने लगता। आपकी सुरीली आवाज में लोग बंध जाते थे। आश्रम से पाँच किलोमीटर की दूरी तक आवाज स्पष्ट सुनाई देती थी। सभी लोग इस आवाज को सुनकर प्रसन्न होकर आश्रम की ओर चल पड़ते थे। यह एक ईश्वरीय शक्ति ही थी, जिससे लोग अपने सभी काम छोड़कर भी आश्रम में चले जाते थे। कई बार ऐसा भी होता कि आश्रम में जो भक्त उनके पास आते उनके मन के विचारों को महाप्रभुजी अपनी दिव्य दृष्टि से जान लेते थे और स्पष्ट रूप से उन्हें कह देते थे। इनकी इस शक्ति से प्रभावित होकर लोगों ने उन्हें अन्तर्यामी प्रभु के नाम से संबोधित करना प्रारम्भ किया। भजन गाते समय श्री महाप्रभुजी का ध्यान एकाग्र अर्थात एक ही स्थान पर था। भजन करते समय महाप्रभुजी के सन्मुख कोई भी व्यक्ति नहीं बैठता था। सभी व्यक्ति उनके दायें-बायें एवं पीछे की तरफ ही बैठते थे। कारण कि महाप्रभुजी का दिव्य प्रकाश इतना तेजस्वी था कि साधारण व्यक्ति सहन नहीं कर सकता था।
कुछ ही दिनों बाद दूर-दूर से भक्त गण गुरुदेव श्री महाप्रभुजी के आश्रम में आने लगे। सभी भक्त दर्शन लाभ प्राप्त करते थे, भजन कीर्तन करते, यथाशक्ति भेंट भी करते और कुशलपूर्वक अपने गाँवों में लौट जाते थे। गुरुदेव श्री महाप्रभुजी की कृपा दृष्टि सभी भक्तों पर समान रूप से थी।
श्री देवडूँगरी संन्यास आश्रम
GPS 27.150081, 74.303485